तो आज देखते हैं प्रिंबल ऑफ इंडियन कांस्टिट्यूशन सबसे पहले इसकी वर्डिक देख लेते हैं इसकी वर्डिक कहती है वी द पीपल ऑफ इंडिया हैविंग सोलमनली रिजॉल्व टू कांस्टिट्यूशन इंडिया इनटू अ सॉवरन सोशलिस्ट सेकुलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक एंड टू सक्योर इट्स टू ऑल इट्स सिटीजंस जस्टिस सोशल इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल लिबर्टी ऑफ थॉट एक्सप्रेशन
बिलीफ फेथ एंड वरशिप इक्वलिटी ऑफ स्टेटस एंड अपॉर्चुनिटी एंड टू प्रमोट अमंग देम ऑल फ्रेटरनिटी एश्योरिंग द डिग्निटी ऑफ द इंडिविजुअल एंड द यूनिटी एंड इंटीग्रिटी ऑफ द नेशन इन अवर कांस्टिट्यूशन असेंबली दिस 26 डे ऑफ नवंबर 1949 डू हेयर बाय अडॉप्ट नेक्ट एंड गिव आवर सेल्व दिस कांस्टिट्यूशन
तो अब इसमें जो है क्या-क्या इंपॉर्टेंट फीच फ है जो हमें देखने को मिलते हैं सबसे पहले हमें जो फीचर देखने को मिलता है वह है अथॉरिटी सोर्स ऑफ द कांस्टिट्यूशन अगर हम यहां पर देखें तो यहां पर क्या लिखा हुआ है वी द पीपल ऑफ इंडिया हम जो इंडिया
के लोग हैं तो इससे हमें क्या पता चलता है इससे हमें यह पता चलता है कि कांस्टिट्यूशन की जो अथॉरिटी है वह पीपल ऑफ इंडिया से निकलती है तो मतलब जो पावर का मेन सोर्स है वो कौन है इंडिया के लोग फिर प्रिंबल से दूसरी चीज क्या पता चलती
है नेचर ऑफ इंडियन सोसाइटी कैसे पता चलता है क्योंकि प्रिंबल में हमारे पास क्या था अगर हम प्रिंबल में हम देखें तो प्रिंबल में हमारे पास सोवन सोशलिस्ट और सेकुलर जो था लिखा गया था जैसे यह देखो सोवन सोशलिस्ट और सेकुलर तो इससे हमें यह पता चलता है कि हमारा जो
स्टेट है उसकी नेचर कैसी है ठीक है अब ये सोर्न क्या होता है सोशलिस्ट क्या होता है और सेकुलर क्या होता है यह हम थोड़ी देर बाद देखेंगे ठीक है मगर इससे हमें क्या पता चलता है कि इंडियन स्टेट की नेचर कैसी है इंडियन स्टेट सोरन भी है सोशलिस्ट भी
है सेकुलर भी है और डेमोक्रेटिक भी है और इसकी पॉलिटी जो है व रिपब्लिकन है तो यह सब टर्म्स हम आगे देखने वाले हैं अब एक और चीज हमें प्रिंबल से पता चलती है व है कांस्टिट्यूशन के ऑब्जेक्टिव्स जैसे यह कांस्टिट्यूशन जो बना है यह किस ची को
दिमाग में रख के बनाया गया है इसके ऑब्जेक्टिव क्या थे बनाने का मकसद क्या था जैसे इसने ऑब्जेक्टिव में क्लीयरली डिफाइन किया है कि जस्टिस कांस्टिट्यूशन जो है वह जस्टिस सीक करना चाहता है लिबर्टी चाहता है इक्वलिटी की का प्रोविजन है फ्रेटरनिटी का प्रोविजन है तो हमें यह पता चलता है कि
जो कांस्टिट्यूशन था उसके ऑब्जेक्टिव्स क्या थे वो सामने सामने प्रिंबल से दिखते हैं और साथ में हमें इससे यह भी पता चलता है कि कांस्टिट्यूशन को अडॉप्ट कौन सी डेट को किया गया था तो यहां पर आप देख सकते हो कि नवंबर 1949 और साथ में डेट भी लिखी हुई है 26 डे
ऑफ नवंबर 1949 तो हमें यह भी पता चलता है कि कांस्टिट्यूशन किस डेट को अडॉप्ट हुआ था तो क्या पता चला अथॉरिटी कहां से आती है लोगों से फिर हमें पता चलता है कि इंडिया स्टेट जो है वह उसकी नेचर क्या है ऑब्जेक्टिव्स क्या है और कांस्टिट्यूशन की
डेट क्या है अब प्रिंबल की हम हिस्ट्री के बारे में थोड़ा सा देखते हैं अगर हम देखें जो प्रिंबल के पीछे के जो आइडियाज हैं जो इंस्पिरेशन है वह मिली है जवाहरलाल नेहरू ने एक ऑब्जेक्टिव रेजोल्यूशन जो था वह पास किया था कंसीट असेंबली ने अडॉप्ट किया
था 22 जनवरी 1947 को तो इसकी जो इंस्पिरेशन है यह लाई करती है किसमें जवाहरलाल नेहरू के ऑब्जेक्टिव रेजोल्यूशन में जो 22 जनवरी 1947 को ही कांट असेंबली ने अडॉप्ट कर लिया था बट अब इसकी हम नेचर देखें तो यह जो प्रिंबल है यह कोर्ट के
द्वारा इफोर्स नहीं किया जा सकता मतलब आप कोर्ट के पास अप्रोच नहीं कर सकते कि इस को जो है अमल में लाया जाए तो मतलब आप इसको इफोर्स नहीं करा सकते अब मगर पमल से हमें कांस्टिट्यूशन के ऑब्जेक्टिव्स का पता चलता है और कांस्टिट्यूशन की इंटरप्रिटेशन और
आर्टिकल्स की इंटरप्रिटेशन का भी पता चलता है जब अगर कोई लैंग्वेज एमिगस हो कुछ समझ ना चले तो प्रिंबल से जो है वो हमें कांस्टिट्यूशन का ऑब्जेक्टिव पता चलता है कि कांस्टिट्यूशन क्या दिमाग में रख के बनाया गया था ठीक है अब क्या-क्या की टर्म्स है जो प्रिंबल में यूज हुई है और
उनका क्या-क्या मतलब है सबसे पहली जो टर्म यूज हुई है उसे कहते हैं हम सोवन मतलब जो थोड़ी डिफिकल्ट है इसका हम मतलब समझते हैं के सोण का यह मतलब हो गया कि इंडिया जो है वह अपना इंडिपेंडेंस रखती है और अपनी ऑटोनॉमी रखती है मतलब इसको अपने फैसले
लेने के लिए किसी के ऊपर डिपेंडेंट नहीं है यह पूरी तरीके से सक्षम है यह अपने फैसले खुद ले सकता है अपनी पूरी की पूरी जो है पावर इसकी अपनी है हर चीज में यह फैसला खुद ले सकता है इससे और भी हम यह कह सकते हैं कि इंडिया किसी दूसरी नेशन के
सबोर्डिनेट नहीं है मतलब कि दूसरी नेशन के नीचे नहीं आता इंडिया के अपनी जो है वोह ऑटोनॉमी है यह सारे डिसीजन अपने थ्रू ले सकता है अपने सारे डिसीजन ये खुद ले सकता है और यह सारी की सारी जो मेंबरशिप होगी इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशंस में ये वो भी खुद
बखुदा ले सकता है जैसे कि कॉमनवेल्थ नेशन की एक ऑर्गेनाइजेशन होती है तो उसमें भी यह मेंबरशिप इंडिपेंडेंटली ले सकता है इसको किसी से परमिशन लेने की जरूरत नहीं है तो यह इंटरनल भी और अपने एक्सटर्नल फैसले भी खुद ले सकता है यह किसी के सबोर्डिनेट नहीं है फिर दूसरा वर्ड आता है
जिसे हम कहते हैं सोशलिस्ट अब ये जो सोशलिस्ट है यह 42 अमेंडमेंट एक्ट 1976 के द्वारा प्रिंबल में ऐड किया गया मतलब यह सोशलिस्ट वर्ड जो हम प्रिंबल में देखते हैं ये पहले से कांस्टिट्यूशन के अंदर नहीं था 42 अमेंडमेंट जो हुई थी उसने
इस वर्ड को प्रिंबल के अंदर ऐड किया था अब ये जो टर्म है ये कमिटमेंट शो करती है सोशलिस्ट आइडियाज प क्योंकि वर्ल्ड सोशलिस्ट है तो यह सोशलिस्ट आइडियाज के र कमिटमेंट शो करती है तो अब जैसे कांस्टिट्यूशन में पहले भी जो है वह ऐसा नहीं था कि सोशलिस्ट आइडियाज
या एलिमेंट पहले मौजूद नहीं थे पहले भी मौजूद थे अगर हम देखें तो जैसे हम डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी देखें तो उसमें जो प्रिंसिपल्स है मोस्टली वो सोशलिस्ट प्रिंसिपल्स ही है तो ऐसा नहीं था कि कांस्टिट्यूशन के अंदर पहले से यह सोशलिस्ट प्रिंसिपल्स नहीं थे बट
प्रिंबल में यह अलग से लिख के वर्ड शो कर दिया गया कि हमारी जो नेचर है हम सोशलिस्ट आइडियाज में बिलीव करते हैं तो तो इंडिया का जो सोशलिज्म है वह डेमोक्रेटिक है मतलब वह लोगों से उसकी पावर आती है ठीक है और उसके बाद क्या है कि यह मिक्स है किस
तरीके का पब्लिक और प्राइवेट एंटरप्राइज का मतलब यहां पर प्राइवेट भी हो सकते हैं और पब्लिक के लिए पब्लिक के लेवल पर सरकार भी जो है वह कुछ ना कुछ बिजनेसेस वगैरह रन कर सकती है जैसे रेलवेज एयरलाइंस और प्राइवेट भी जो है वह रन कर
सकते हैं बिजनेसेस को ठीक है तो यह एक परफेक्ट ब्लेंड है मार्क्सिस्ट और गांधियन सोशलिज्म का तो मतलब हमारा जो सोशलिस्ट एलिमेंट जो हमारे कांस्टिट्यूशन के द्वारा निकल के आता है तो वो ब्लेंड है उसमें कुछ एलिमेंट्स गांधियन फिलॉसफी के भी हैं और कुछ मार्क्सिस्ट फिलॉसफी के हैं वो दोनों
का एक परफेक्ट कॉमिनेशन एक परफेक्ट ब्लेंड है फिर अगला वर्ड आता है सेकुलर अब यह सेकुलर वर्ड भी जो है यह भी कांस्टिट्यूशन के प्रिंबल में पहले से नहीं था यह भी 42 अमेंडमेंट एक्ट 1976 के द्वारा जो है कांस्टिट्यूशन में ऐड किया गया था अब ये जो है ये
कांस्टिट्यूशन की पूरी कमिटमेंट शो करता है इंडिया को सेकुलर स्टेट के रिलेटेड अब कांस्टिट्यूशन के जो बनाने वाले थे उन्होंने यह कोशिश की कि इंडिया को एक सेकुलर स्टेट बनाया जाए जो कि और भी कांस्टिट्यूशन के प्रोविजन से पता चलता है जैसे कि आप अगर फंडामेंटल राइट्स पढ़ोगे
तो आपको पता चलेगा वहां पे राइट अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन आपको मिलेगा और आप किसी को भी मतलब रिलीजन रेस या कास्ट के बेसिस प किसी को भी आप डिस्क्रिमिनेट नहीं कर सकते तो ऐसा नहीं था कि कांस्टिट्यूशन में सेकुलर टर्म के रिलेटेड पहले प्रोविजन नहीं थे थे बट यह भी जो है प्रिंबल में
खास तौर से लिखकर अमेंड करके डाल दिया गया यह वर्ड ताकि वह कमिटमेंट शो हो कि कांस्टिट्यूशन जो है वह एक सेकुलर कमिटमेंट शो करता है ठीक है अब और सुप्रीम कोर्ट ने भी जो है एमफसा इज किया है जोर डाला है कि इंडिया की नेचर जो है वह
सेकुलर ही है ठीक है अब डेमोक्रेटिक तो अब अगर हम डेमोक्रेटिक वर्ड का मतलब देखें तो यह जो प्रिंबल में यह टर्म है यह हमें बताती है कि हमारी जो डेमोक्रेसी है वह पॉपुलर सोनि में बिलीव करती है कि अल्टीमेट जो अथॉरिटी है वह लोगों के पास
है मतलब लोग वोट डालते हैं वो रिप्रेजेंटेटिव चुनते हैं उससे सरकार बनती है उससे लोग पार्लियामेंट में पहुंचते हैं लोकसभा में और उससे जो है वह फैसले लिए जाते हैं तो मतलब अल्टीमेटली जो पावर है वो किस में है वो लोगों में है तो यह जो
वर्ड डेमोक्रेटिक है ये यही शो करता है कि रियल सोनि जो है रियल जो डेमोक्रेसी की जो पावर है वो पॉपुलर सरेटी मतलब सब लोगों के बीच में मौजूद है और लोगों के पास ही अल्टीमेट अथॉरिटी है अब इंडिया जो है वो एक इनडायरेक्ट डेमोक्रेसी पे चलता है मतलब इसके जो
रिप्रेजेंटेटिव्स होते हैं वो इलेक्टेड होते हैं और वो सिटीजंस के बेसिस पे फैसला लेते हैं ऐसा नहीं है यहां पे कि हर सिटीजन उठेगा और अपना फैसला खुद ले लेगा सिटीजंस पहले वोट डालता है फिर वह अपने रिप्रेजेंटेटिव्स को चुनता है फिर रिप्रेजेंटेटिव्स जो हैं वह सिटीजंस के
बिहाव पे फैसला लेते हैं तो डायरेक्टली सिटीजंस फैसला नहीं लेते सिटीजंस अपने चुने हुए रिप्रेजेंटेटिव्स के जरिए फैसला लेते हैं तो इसलिए हम यह कहते हैं कि यह जो इंडिया में जो डेमोक्रेसी है वो इनडायरेक्ट डेमोक्रेसी है जिसमें हम लोगों को पहले इलेक्ट करते हैं फिर वो
रिप्रेजेंटेटिव जो है वो वो डिसीजन सिटीजन के ब बिफ पर लेते हैं ठीक अब जो डायरेक्ट डेमोक्रेसी होती है अगर होती है तो उसमें अगर डायरेक्ट पार्टिसिपेशन अगर होती हो तो वह किस तरीके से हो सकती है वोह हो सकती है जैसे एक तरीका होता है रेफरेंडम प्लेब
साइड्स और इनिशिएटिव तो इसके बारे में आप हम अलग से देखेंगे क्योंकि हमारा यहां पर कोई खास इससे गर्ज नहीं है बट हमें यह है कि हमारा जो रिप्रेजेंटेटिव होते हैं वो इरेक्ट इलेक्टेड होते हैं यह हमारे काम की चीज है अब आगे अब अगर हम डेमोक्रेटिक स्ट्रक्चर की
बात करें तो वो रिप्रेजेंटेटिव पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी है मतलब हमारे यहां पार्लियामेंट है और पार्लियामेंट में हमारे जो है रिप्रेजेंटेटिव जो है वह जाके बैठते हैं और एग्जीक्यूटिव जो होता है वह जो होता है वह लेजिस्लेटर को अकाउंटेबल होता है लेजिस्लेटर मींस जो फैसले बनाने वाली बॉडी होती है मतलब हर देश में जो
फैसले बनाने वाली बॉडी होती है है जो डेमोक्रेसी के प्रिंसिपल्स पे बिलीव करते हैं तो उसको हम लेजिस्लेटर कहते हैं कि जिसने कानून बनाने हैं और एग्जीक्यूटिव होगी जिसने कानून को इंप्लीमेंट करना है तो वो जो कानून जिसने इंप्लीमेंट भी करना है वो भी जो अकाउंटेबल है वो किस पे है
लेजिस्लेटर पे कानून बनाने वाली पार्टी और लेजिसलेच्योर चेक एंड बैलेंस आता है तो कोई भी जो है एब्सलूट पावर का इस्तेमाल नहीं कर सकता एक तरह की ट्रांसपेरेंसी साफ सुथरा माहौल रहता है और अकाउंटेबिलिटी रहती है मतलब अपने सवालों पे आपके फैसलों प आपको जवाबदेही भी देनी पड़ती है अगर आप
गलत फास ले लेते हो तो आपको अगली बार इलेक्शन में बाहर कर दिया जाता है ठीक है अब प्रिंबल में जो टर्म डेमोक्रेटिक है वो सिर्फ और सिर्फ पॉलिटिकल डेमोक्रेसी से लिंक नहीं है वो इससे भी आगे बहुत सारे मतलब को अपने अंदर लेती है तो यह जो पॉलिटिकल डेमोक्रेसी है वो सोशल
और इकोनॉमिक डायमेंशन को भी जो है वो ट्रीट करती है वह अपने अंदर कंसीडरेशन में लेती है तो अगर हम देखें तो इसलिए हमारी जो कमिटमेंट है कांस्टिट्यूशन की वो एक इंक्लूसिव सबको साथ लेकर चलने वाली और इक्विटेबल मतलब जिसमें कोई अमीर गरीब ना हो सबके पास बराबर के हक
हो सबके पास बराबर की पावर हो इसकी कोशिश करते हैं कि सब बराबर हो सब के पास इक्वल राइट्स हो इक्वल फ्रीडम हो इक्वल फैसला लेने की इजाजत हो सब कुछ इक्विटेबल एक सोसाइटी बने ठीक है और ताकि और डेमोक्रेटिक प्रिंसिपल जो है वह जो पब्लिक लाइफ है उसके हर एस्पेक्ट
में जो है उस परे असर पढे ठीक है हर जगह जो है वो फैसला डेमोक्रेटिक वे में लिया जाए ठीक है सोशल लेवल प इकोनॉमिक लेवल प डेमोक्रेटिक प्रिंसिपल्स मतलब सारे लोगों को साथ लेके ही फैसला लिया जाए फिर रिपब्लिक अब अगर हम रिपब्लिक की बात करें
तो रिपब्लिक इंडिया जो है वह एक डेमोक्रेटिक रिपब्लिक है मतलब लोग उसको चुनते हैं और यह रिपब्लिक भी है अब रिपब्लिक का क्या मतलब होता है कि रिपब्लिक उल्टा होता है मोनार्की का अगर मोनार्की देखो मोनार्की क्या होता है कि वहां पर जो हेड ऑफ द स्टेट होता है ठीक है
वो इलेक्टेड नहीं होता ठीक है वो एक हेरेडिटरी पोस्ट होती है जैसे यूजुअली किंग और क्वीन तो वो एक हेरेडिटरी पोजीशन होती है मतलब वो जो है नस्ल ब नस्ल जो है वह पोजीशन अपनी ही अगली जनरेशन को दे दी जाती है तो उसमें कोई इलेक्शन से या इलेक्ट करके वहां
पर नहीं पहुंचता बट डेमोक्रेसी में क्या है कि जो हेड है स्टेट का वह जो है वो डायरेक्टली या इनडायरेक्टली इलेक्ट किया जाता है और उसकी एक फिक्स्ड टर्म भी होती है तो रिपब्लिक का यह मतलब हो कि यहां का जो हेड है उसको हम इलेक्ट करते हैं चाहे
वो डायरेक्टली इलेक्ट करें या इनडायरेक्टली इलेक्ट करें तो जैसे इंडिया में जो अगर हम बात करें तो स्टेट का हेड जो है वह प्रेसिडेंट है और व प्रेसिडेंट की पोस्ट को इलेक्ट किया जाता है मतलब वो इलेक्टेड पोस्ट है किसी ना किसी माध्यम से इलेक्ट किया जाता है वो हेरेडिटरी पोस्ट
नहीं है ऐसा नहीं कि जो प्रेसिडेंट बन गया तो आगे उसके बच्चे भी जो है वो प्रेसिडेंट बन सकते हैं बन जाएंगे डायरेक्ट हेरिडिटी की वजह से अगर कोई बनेगा तो वो एक मेथड से बनेगा एक टाइप के इलेक्शन से बनेगा चाहे वो इलेक्शन डायरेक्टली कराया जाए या
इनडायरेक्टली कराया जाए तो इंडिया के केस में हम रिपब्लिक का मतलब यह होता है कि एक इलेक्टेड हेड है यहां पे जो क्या है प्रेसिडेंट और इसको इनडायरेक्टली हम चूज करते हैं और उसका टर्म भी फिक्स होता है 5 साल का और रिपब्लिक का यह भी मतलब है कि पॉलिटिकल जो
सनटीईसी एक इंडिविजुअल में फैसला लेने की ताकत नहीं है क्योंकि प्रेसिडेंट को भी इलेक्ट किया जाता है तो इसका मतलब है इलेक्ट किया जाता है तो सारी की सारी पावर जो है व प्रेसिडेंट के हाथ में नहीं है रियल पावर जो है वह किसी एक सिंगल इंडिविजुअल में नहीं है वह पॉलिटिकल सोनि
है वह पॉलिटिकल पावर है वह बटी हुई है तो मतलब कोई भी जो है अपनी अकेले लेवल पे पावर को एक्सरसाइज नहीं कर सकता तो तो सारे के सारे जो पब्लिक ऑफिसेज हैं वह किसी भी प्रिविलेज क्लास के लिए रिजर्व नहीं है के सारों के लिए ओपन है किसी को
कोई डिस्क्रिमिनेशन जो है वह उसको फेस नहीं करनी पड़ती ठीक है कोई भी अगर किसी भी पब्लिक ऑफस को होल्ड करना चाहता है तो सबके लिए जो एलिजिबिलिटी है वो सेम है किसी के लिए कोई स्पेशल जो है प्रोविजन नहीं बनाए ग फिर अगर हम देखें जस्टिस की
बात तो जस्टिस हो गया इंसाफ तो जस्टिस जो है प्रिंबल में वह तीन तरह की फॉर्म्स में हम देख सकते हैं एक सोशल एक सोशल लेवल प एक इकोनॉमिक लेवल पर और एक पॉलिटिकल लेवल पे मतलब जस्टिस जो है वो सिर्फ एक ही तरह की जस्टिस नहीं वो तीन तरह की जस्टिस की
बात करता है सोशल लेवल प मतलब सोसाइटी के लेवल पे फिर मनी के लेवल पे इकोनॉमिक लेवल पे और पॉलिटिकल लेवल पे तो सोशल जस्टिस जो है वो हो गया उसका अब क्या मतलब हो गया सोशल जस्टिस का हो गया कि सबको इक्वल ट्रीटमेंट देना है किसी भी सोशल डिस्टिंक्शन में
हमें बिलीव नहीं करना विदाउट किसी भी सोशल डिस्टिंक्शन में बिलीव किया हमें सबको जो है इक्वल ट्रीटमेंट देनी है चाहे वो किसी भी कास्ट कलर रेस या रिलीजन या से से बिलोंग करता हो सबको जो है ट्रीटमेंट इक्वल ही देनी है उसी तरीके से अगर हम
इकोनॉमिक जस्टिस की बात करें तो हमें जो है अ जो है इनक्व जो बढ़ रही है उनको रोकना है वेल्थ जो इनक्व है उसको कम करना है मतलब किसी के पास ज्यादा पैसा किसी के पास कम है तो उसको हमें कम करने की कोशिश करना है और फिर हमें जो है इनकम और
प्रॉपर्टी की अमलेश को कम करना है और ये जो डिफरेंसेस हैं ये ऐसे रिसोर्सेस बनाने हैं कि हर एक बंदा जो है इक्वल इकोनॉमिक रिसोर्सेस का इस्तेमाल कर सके उसको कोई इक्वालिटीज का सामना ना करना पड़े फिर यह है कि पॉलिटिकल जस्टिस तो पॉलिटिकल जस्टिस क्या है कि हर बंदे को जो
है वह इक्वल पॉलिटिकल राइट्स होने चाहिए हर पॉलिटिकल ऑफिस प पहुंचने की उसको राइट होना चाहिए गवर्नमेंट में अपनी आवाज उठाने का उसको हक होना चाहिए तो जैसे अगर को रिप्रेजेंटेटिव है तो ऐसा नहीं होगा कि आपको किसी कास्ट के बेसिस को कहेंगे कि तुम इलेक्शन नहीं लड़ सकते या फिर किसी
बहुत दूर रहने वाले इलाके वाले बंदे को कहेंगे तुम इलेक्शन नहीं लड़ सकते तो जब लड़ सकते हैं तो सब जो क्राइटेरिया सेट है वो जो भी वो फॉलो करता है वो सब इलेक्शन लड़ सकते हैं चाहे व किसी भी जेंडर का हो चाहे वो किसी भी इलाके का हो चाहे वो किसी
भी कास्ट से बिलोंग करता हो ठीक है तो ये जो आइडियल है जस्टिस के ये एक इंस्पिरेशन जो लेते हैं ये इंस्पिरेशन आती है रशियन रेवोल्यूशन जो 1917 में आया था तो वहां से ये जो इंस्पिरेशन है ये जस्टिस के जो जो आईडियाज उठाए हैं यह हमने वहां से
इंस्पिरेशन ली है फिर फिर बात करते हैं लाबी लाबी का यह मतलब हो गया कि एब्सेंट ऑफ रिस्ट्रेंट मतलब किसी भी तरीके की जो बंदिशें होती हैं उस की अब्सेंस होना मतलब किसी भी तरीके की रुकावटें बंदिशें जो है वह ना होना तो अब यह है कि अगर अगर आपको
बंदिशें नहीं है तो इससे क्या मिलता है पर्सनल डेवलपमेंट को खुद की को डेवलप करने का खुद को आगे बढ़ाने का इंडिविजुअल लेवल बहुत मौका मिलता है तो प्रिंबल जो है वो कौन-कौन सी लाबी की बात करता है वो करता है लाइब ऑफ थॉट सोच की लाबी की भी बात
करता है एक्सप्रेशन की भी बात करता है आप अपने आप को एक्सप्रेस भी कर सकते हो जो आप सोचते हो आप बिलीफ भी रख सकते हो जो चाहो आप सोच सकते हो सोचने का अपना कोई ना कोई बिलीफ रखने का आपको पूरा हक है आप फेथ भी
रख सकते हो आप वरशिप भी कर सकते हो और यह जो है अगर फेथ और वशिप की हम बात करें तो यह फंडामेंटल राइट्स में भी जो है यह इंक्लूड किया गया है ठीक है बट अब क्या है कि यह भी जो लाइब है इसका
भी जो इंस्पिरेशन है वह अगर हम देखें तो वह कहां से मिला है फ्रेंच रेवोल्यूशन से जो 1789 से 1799 तक चला था तो अगर हम बात करें जस्टिस तो जस्टिस था रशियन रेवोल्यूशन से इंस्पिरेशन थी और लिबर्टी का जो इंस्पिरेशन है वो कहां से है फ्रेंच रेवोल्यूशन से
अब अगर हम बात करें इक्वलिटी की तो इक्वलिटी जो है वो बराबरी को शो करता है तो इसका मतलब यह है कि किसी को भी कोई भी स्पेशल प्रिविलेज नहीं दी जाएगी ए अब्सेंस होगी स्पेशल प्रिविलेजेस की ठीक है और सबको जो है एपल ऑफ ढेर सारी अपॉर्चुनिटी
जो है मिलेंगी बिना किसी भी डिस्क्रिमिनेशन से ठीक है अब इक्वलिटी कैसे कैसी हो सकती है एक इक्वलिटी हो सकती है सिविक इक्वलिटी सिविक इक्वलिटी क्या हो गया कि सारे के सारे जो है ला के सामने बराबर है कोई भीला के सामने बड़ा या छोटा नहीं है फिर किसी को भी कोई भी
डिस्क्रिमिनेशन का सामना नहीं करना पड़ेगा और पब्लिक एंप्लॉयमेंट में भी जो है वो इक्वल अपॉर्चुनिटी मिलेगी ठीक है फिर पॉलिटिकल इक्वलिटी पॉलिटिकल इक्वलिटी क्या है कि कोई भी जो है डिस्क्रिमिनेशन इलेक्टोरल रोल्स में नहीं की जाएगी और सबको जो है इलेक्शन में वोट डालने का हक
होगा अडल्ट सफरेज के बेसिस प मतलब सारे के सारे जो एक सर्टन एज के ऊपर होंगे तो उन सबको वोट डालने का हक होगा उसमें कोई डिस्क्रिमिनेशन नहीं होगी कि लड़के वोट डालेंगे लड़केया नहीं वोट डालेंगे या बूढ़े वोट डालेंगे उसके बाद मिडल एज लोग
नहीं वोट डालेंगे तो ऐसा कुछ भी नहीं होगा जब जो क्राइटेरिया सेट है उसके क्राइटेरिया पे सब के सबको रिस्पेक्टिव ऑफ जेंडर जो है आपको वोट देने का अधिकार दिया जाएगा ऐसा नहीं किया जाएगा कि आपके पास प्रॉपर्टी ज्यादा है तो आप वोट दोगे प्रॉपर्टी कम है तो वोट नहीं दोगे तो एक
जो क्राइटेरिया सबके लिए है वो सबके लिए होगा तो सब पॉलिटिकल पॉलिटिकली इक्वल रहेंगे फिर इकोनॉमिकली इकोनॉमिक इक्वलिटी जैसे कि इकोनॉमिक इक्वलिटी जो है वो वो भी इक्वलिटी जो है एक उसमें इक्वलिटी इकोनॉमिक इक्वलिटी भी आती है और इकोनॉमिक इक्वलिटी अगर हम देखें तो हमारे कांस्टिट्यूशन में डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स
ऑफ स्टेट पॉलिसी भी जो है इकोनॉमिक इक्वलिटी पर स्ट्रेस डालते हैं वो इसकी बात करते हैं जैसे उसमें अगर हम देखें जैसे इक्वल राइट्स टू एडिक्ट मींस ऑफ लाइवलीहुड भी एक हमारे पास डक्ट प्रिंसिपल एक ट प्रिंसिपल में इक्वल पे फॉर इक्वल वर्क का भी कांसेप्ट आता है और यह जो
हमारे पास इक्वलिटी का आईडिया है तो यह हमने जो इंस्पिरेशन ली है यह हमने ली है फ्रेंच रेवोल्यूशन से ठीक है और अब अगर हम देखें एक और टर्म आती है हमारे पास जिसे हम कहते हैं फ्रेटरनिटी तो फ्रेटरनिटी जो है फ्रेटरनिटी क्या मतलब हुआ फ्रेटरनिटी का
मतलब हो गया एक तरह का सेंस ऑफ ब्रदरहुड मतलब भाईचारे का एहसास ठीक है अब ये अगर भाईचारे का हम एहसास बात करें तो प्रिंबल में ये फ्रेटरनिटी की बात की गई है अब फ्रेटरनिटी की हम अगर मतलब देखें तो क्या हो गया जैसे इसको और डीप समझे तो जैसे
हमारे पा यहां क्या है सिंगल सिटीजनशिप है मतलब एक ही सिटीजनशिप है यहां पे हर नागरिक जो भी इंडिया का है उसके पास सिंगल सिटीजनशिप है कोई स्टेट की सिटीजनशिप अलग और सेंटर की अलग नहीं है पूरी की पूरी इंडिया की एक ही सिटीजनशिप है ठीक है फिर
अगर हम फंडामेंटल ड्यूटीज की बात करें तो वो भी जो है हार्मोनी और भाईचारा सारे के सारे सिटीजंस में प्रमोट करते हैं ठीक है उसी तरीके से प्रिंबल जो है वो फ्रेटरनिटी को डिक्लेयर करता है ताकि वो इंडिविजुअल्स की डिग्निटी जो है वो बनी रहे ठीक है किसी
को डिसरेटर एक की जो है शान जो है वो डिग्निटी जो है वो बनी रहनी चाहिए और पूरी की पूरी नेशन जो है वो उसकी इंटीग्रिटी बनी रहनी चाहिए ठीक ठीक है इंटीग्रिटी हो गया सबको साथ र के एक मजबूत जोड़ जो है वो बना रहना चाहिए ठीक है
अब पहले जो फ्रेज था यूनिटी ऑफ द नेशन उसमें इंटीग्रिटी वर्ड को जो है 4 सेकंड अमेंडमेंट द्वारा ऐड किया गया था तो पहले फ्रेज था यूनिटी ऑफ द नेशन और बाद में क्या हो गया था बाद में इस फ्रेज को बदल के एक वर्ड नया ऐड किया था यूनिटी वाला
वर्ड पहले से था बट बाद में हमने इंटीग्रिटी को भी सेकंड अमेंडमेंट के द्वारा इंटीग्रिटी वर्ड जो है यह भी जो है हमने प्रिंबल में डाला था ठीक है और इसमें क्या है साइकोलॉजिकल टेरिटोरियल एस्पेक्ट्स नेशनल इंटीग्रेशन के भी आते हैं साइकोलॉजिकल क्या हो ग भाईचारे की फीलिंग दिमाग से जो
हम साइकोलॉजिकल लेवल प सोचते हैं और टेरिटोरियल एक्सपेक्ट क्या होगे कि चाहे कोई कहां भी रहता है किसी भी स्टेट में रहता है फिर भी जो है एक वननेस की एक ब्रदरहुड की जो है फील लिंक है ठीक तो तो अब अगर हम देखें तो तीन अमेंडमेंट्स अभी
तक मतलब प्रिंबल में हुई एक ही अमेंडमेंट के द्वारा हुई और उसमें मतलब तीन वर्ड्स को ऐड किया था ठीक है तो एक वर्ड उनमें से क्या था इंटीग्रिटी और बाकी दो वर्ड्स हम ऊपर देख चुके हैं ठीक है अब जो कांस्टिट्यूशन है वो सेफगार्ड करता है
डिग्निटी ऑफ इ जस को भी ठीक है और वो कैसे सेफगार्ड करता है बाय फंडामेंटल राइट्स ठीक है तो जो डिग्निटी है सारे के सारे इंडिविजुअल की जो उनकी शान है उसकी अगर हम बात करें तो वह सिक्योर करने के लिए हमारे पास फंडामेंटल राइट्स भी है जो उसके
रिलेटेड बात करते हैं ठीक है और डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स में भी यह जो है डिग्निटी की बात है ठीक है और फंडामेंटल ड्यूटीज भी जो है वो भी डिग्निटी ऑफ वुमेन के बारे में में बात करती हैं और सटी को अप होल्ड करने की बात करती हैं और यूनिटी
और इंटीग्रिटी ऑफ इंडिया को भी अप होल्ड करने की बात करती है ठीक है अब जो यूनिटी ऑफ स्टेट्स जो है वह आर्टिकल वन में जो है वह कांसेप्ट दिया गया है और वह आर्टिकल वन से हमें यह पता चलता है कि जो हमारे यहां जो स्टेट्स की यूनिटी है वो
एक इंडिस्ट्रक्टीबल नेचर की है उसको तबाह नहीं किया जा सकता यूनियन से मतलब उनको बाहर नहीं निकाला जा सकता तो इसकी वजह से जो इंटीग्रेशन में जो प्रॉब्लम्स थी तो उन हिडेंसस को सॉल्व किया गया क्योंकि जो स्टेट्स की जो यूनिटी है वह बहुत ही मजबूत
है यहां पर अगर स्टेट चाहे तो खुद को अपने आप को कंट्री से अलग नहीं कर सकती वह एक यूनिटी ऑफ स्टेट्स है तो स्टेट चाहकर भी कंट्री से अलग नहीं हो सकती तो यह एक इंडिस्ट्रक्टीबल नेचर है इंडियन कांस्टिट्यूशन ठीक है इसको स्टेट्स जो है वो खुद को अलग
नहीं कर सकती मतलब इंडिया की यूनिटी को स्टेट्स के द्वारा तोड़ा नहीं जा सकता अब अगर हम बात करें कि प्रीमल के एवोल्यूशन के बारे में तो मतलब प्रीमल में क्या-क्या एवोल्यूशन कैसे हुआ और सुप्रीम कोर्ट की क्या-क्या जजमेंट्स कब कब और कैसे कैसे आई और उन्होने क्याक कहा सबसे पहले जी हमारे
पास अगर हम बात करें केस की जिसका नाम है बेरुबरी यूनियन केस ठीक है इस केस में क्या हुआ कि प्रिंबल को देखा गया कि यह जनरल पर्पस बताता है कि कांस्टिट्यूशन के जो बाकी प्रोविजंस है उनका जनरल पर्पस क्या है उनका मोटिव क्या है ऑब्जेक्टिव
क्या है तो इस जजमेंट से वह जो है सुप्रीम कोर्ट ने जाहिर किया कि यह जो है यह एक जनरल पर्पस शो करता है कांस्टिट्यूशन के प्रोविजंस का और इसको माना गया प्रिंबल को माना गया कि यह जो कांस्टिट्यूशन बनाने वाले जो थे फ्रेमर जो थे उनकी क्या
इंटेंशन थी उसके बारे में यह प्रिंबल बताता है और साथ में यह सिग्निफिकेंट भी जो है वह उसको एक्नॉलेज किया गया कि जो प्रीमल है यह कांस्टिट्यूशन का पार्ट नहीं है तो मतलब बेरुबरी केस जो था इसमें प्रिंबल को कांस्टिट्यूशन का पार्ट नहीं माना गया था मगर बाद में हमारे पास एक और
केस था केसवानंदा भारतीय केस 1973 का इसने ये जो अभी जो पहला ओपिनियन दिया था कि कांस्टिट्यूशन जो है वह उसका पार्ट नहीं है प्रिंबल उस फैसले को रिजेक्ट किया तो अर्ली ओपिनियन को रिजेक्ट किया और यह कहा कि प्रिंबल जो है वह पार्ट ऑफ कांस्टिट्यूशन है तो मतलब पहली जो भरू
भरी यूनियन केस था उसमें प्रिंबल को कांस्टिट्यूशन का पार्ट नहीं नहीं माना गया था मगर बाद में केशवानंद भारतीय केस में इसको कांस्टिट्यूशन का पार्ट माना गया और साथ में यह भी एमफसा किया गया कि प्रिंबल जो है इसकी इंपॉर्टेंस बहुत ज्यादा है ठीक है और यह भी स्ट्रेस डाला
गया कि रीडिंग और इंटरप्रिटिंग ऑफ द कांस्टिट्यूशन जो है वह प्रिंबल की नोबल विजन में जो है वो एक्सप्रेस होती है तो मगर अगर कांस्टिट्यूशन को इंटरप्रेट भी करना है तो उसम भी प्रीमल जो है वह एक गाइडिंग जो है रोल प्ले करता है क्योंकि
इसमें जो है वह फ्रेमर्स की विजन छुपी हुई है फिर एक हमारे पास एक और केस है जिसमें एलआईसी ऑफ इंडिया केस 1995 में तो इसने भी फिर से बताया कि प्रिंबल जो है व एक इंटीग्रल पार्ट है कांस्टिट्यूशन का और यह जो ओपिनियन था फोर फादर्स या क्या कहते
फंडिंग फादर्स ऑफ द कांस्टिट्यूशन का उसकी अलाइन मेंट में यह बनाया गया था और प्रिंबल की इंपॉर्टेंस को फिर से उजागर किया गया ताकि कांस्टीट्यूशनल फ्रेमवर्क को और अच्छे से समझा जा सके अब प्रिंबल के कुछ की एस्पेक्ट को हम देख लेते हैं तो
पहले तो ना तो यह सोर्स ऑफ पावर है ना प्रोहिबिशन है मतलब यह पावर का सोर्स भी नहीं है और ना यह पावर को रोकता है मतलब ना तो यह लेजिसलेच्योर काटता है फैसला गवर्नमेंट जो लेजिसलेच्योर को इफोर्स नहीं करा सकते आप लागू नहीं करवा सकते इसके प्रोविजन को कोर्ट में मूव
करके ठीक है अब अगर हम बात करें अमेंडेबिलिटी ऑफ द प्रीमल तो क्या प्रिंबल को अमेंड किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता तो इस बारे पर हम बात करते हैं अगर हम देखें तो केशवा नंदा भारती केस में यह कहा गया कि प्रिंबल जो है वह अमेंड किया
जा सकता है अंडर कांस्टिट्यूशन के आर्टिकल 368 और साथ में यह भी कहा गया कि प्रीमल में अमेंडमेंट हो सक बट यह है कि बेसिक फीचर्स जो हैं कांस्टिट्यूशन के जो या फिर फंडामेंटल जो एलिमेंट्स है प्रिंबल को उसमें अमेंडमेंट नहीं हो सकती और यह बेसिक
फीचर्स क्या है इसके बारे में बाद में कभी हम ध्यान से आराम से देखेंगे क्योंकि यह बहुत बड़ा टॉपिक अलग से है ठीक है तो अब यह कहा गया कि केशवानंद भारती केस में यह कहा गया कि प्रीमल जो है वो अमेंडेबल है क्योंकि अभी कहा कि इसी केशवानंद भारतीय
केस ने क्या कहा था कि यह कांस्टिट्यूशन का पार्ट है अगर कांस्टिट्यूशन का पार्ट है तो फिर इसको बिल्कुल कांस्टिट्यूशन को अगर अमेंड किया जा सकता है तो फिर कांस्टिट्यूशन का किसी भी पार्ट को अमेंड किया जा सकता है तो अगर पार्ट को अमेंड
किया जा सकता है तो इसको भी अमेंड किया जा सकता है तो तो केसवानंदा भारतीय केस ने एक तो इसको कांस्टिट्यूशन का पार्ट माना और साथ में यह भी कहा कि केस में यह भी कहा गया इस केस में कि इसको अमेंड भी किया जा सकता है बट वो जो फंडामेंटल प्रोविजंस है
वो जो बेसिक प्रोविजंस है उनको अमेंड नहीं किया जा सकता जो बहुत जरूरी है जो सुप्रीम कोर्ट जो है वह तय करेगी तो वह जो बेसिक फीचर्स हैं उनको अमेंड नहीं किया जा सकता बाकी आप प्रिंबल को अमेंड कर सकते हो पार्लियामेंट जो है वह अमेंड कर सकती है अंडर आर्टिकल
368 अब अमेंडमेंट टू द प्रिंबल तो अमेंडमेंट जो है प्रिंबल में सिर्फ एक ही बार हुई है और वह हुई है 42 कॉन्स्टिट्यूशन अमेंडमेंट एक्ट 1976 में और इसने तीन वर्ड ऐड किए थे सोशलिस्ट सेकुलर और इंटीग्रिटी ठीक है प्रिंबल में तो प्रिंबल की अभी तक जो अमेंडमेंट हुई है
वो सिर्फ एक बार हुई है और यहां पर 1973 में केशवानंद भारती केस में जो फैसला सनाया तो 1976 में जो है फिर 4 से कांस्टिट्यूशन अमेंडमेंट एक्ट के तहत तीन वर्ड जो है वह प्रिंबल में ऐड किए गए ठीक है और इस अमेंडमेंट को सुप्रीम कोर्ट ने
वैलिड करार दिया मतलब जेनन करार दिया कि यह बिल्कुल सही तो अभी तक जुड़े रहने के लिए आपका शुक्रिया और अगर कुछ समझ आता है तो यू कैन शेयर इट अगर नहीं समझ आता तो फिर यू कैन कीप इट टू योरसेल्फ सो ओके एंड द बेस्ट थिंग व्ट वी हेयर कैन डू
हम यहां पर बातें नहीं करते हम बिल्कुल टॉपिक के के ऊपर बात करते हैं हम आर पार की इधर उधर की बातें नहीं करते इसलिए जो है जो बहुत बड़ा टॉपिक शायद इसको पढ़ने में हमें दो दिन भी लगते या बातें कर कर के तो हम वो मिनिमाइज करते हैं और बिल्कुल
टू द पॉइंट जो है हम बात करते हैं ठीक है तो इसलिए आपका टाइम भी सेव होता है और सबका भी ठीक है क्योंकि टाइम बड़ा प्रेशिस है हम अननेसेसरी एक्टिविटीज में उसको बर्बाद नहीं कर सकते ठीक है तो थैंक य
source