अनुशासन गरुड़ासन अनुशासन गरुड़ासन विश्वा हन साज ह ओम हर [संगीत] हर ये आज जो पंडित ओमकारनाथ जी की डेथ हो गई तो मैं इनको पिछले मेरी उम्र इस वक्त 65 है मतलब पांच छ साल छोड़ो बचपन के तो 60 साल से तो मैं इनको जानता हूं यह बहुत ही शरीफुल नफसिलिन
ओमकारनाथ जी की तो इन 3 साल के टर्मल में यह हमारे दुख सुख में हम इनके दुख सुख में शामिल होते रहे इनकी बीवी जो थी उनका देहत भी यहीं पर होगा तो उस वक्त भी हमने इसी तरह इंतजा मात किए आज मैंने सवेरे सुना तो
जितने इंतजाम हमें करने थे वो हमने बरादरी नहीं किए सारी बरादरी निकली लकड़ी वड़ी जिसका जितना भी इंतजाम करना था वो हमने कर बहुत दुख में इसका क्योंकि यह बड़े हेल्पफुल आदमी थे मतलब जितना उनसे हो सकता था बरादरी के कामों में शामिल होना था सोशल वर्क में हमेशा आगे आगे रहते
थे मैं जम्मू से आया हूं य आज रात के 2 बज 10 पर इनकी डेथ हो गई है इनका नाम था उकार नाथ बट बहुत ही बहुत ही बहुत ही ईमानदार जैसे आप कहेंगे असफल मलूका जैसे ही [संगीत] थे जब से मैं जि जिया हूं उस वक्त से हमें
भाईचारा देखा हमने कोई गलत रंग नहीं देखा है य जो यह पंडित जी था ओंकारनाथ नाम था यह हमारे साथ उठता बैठता अच्छी तरह हमें यह नहीं लगता था यह पंडित है इसको यह नहीं लगता था यह मुसलमान है ऐसी जिंदगी हमने आपस में यहां बनाई है बहुत मुश्किल हो
सारे लोगों को देखिए मार जान अंदर है यह बहुत पछतावा में है के यह कहते हैं कि यह हमारा भाई था य हमसे जुदा हो गया आज यह भाईचारा रहना चाहिए य अगर भाईचारा य नहीं रहेगा यहां कुछ नहीं रहेगा सब खत्म हो [संगीत] जाएगा आज मैंने सुना कि यहां पर एक पंडित
जी का इंतकाल हुआ है तो आज मैं भी आया हं इसमें शामिल हो गया मैं और बहुत ही अच्छा लगा कि यहां पर जो मुसलमान बरादरी हमने मिल बांट के यहां पर इसका इंतजाम किया कि चाहे लकड़ी का किस हिसाब से इसका करना था
यहां पर वो किया तो इनका जो डेथ हुआ है वह हुआ है जम्मू में अब जम्मू से इसको लाए तो इसने पहली नियत की कि जब मेरा अंत होगा तो वो कश्मीर में ही होना चाहिए अपनी जगह प अपनी आबाई गांव में जहां पर मैंने जन्म
लिया है तो यहां के जो लोग कल मैंने देखे यहां हाल के या बाकी आसपास जितने भी गांव वाले यहां पे वो आए इन्होंने आपस में इसका जो इंतजाम करना था लकड़ी का या वगैरह इन्होंने इनके वहां शहन में टेंट लगाना था तो वो करके इसका अभी लास्ट रसमा जो इनके
हो रहे हैं अभी तो आप देख लीजिए यहां पर कितने मुसलमान भाई है आपस में पंडित भाई है कुछ लोग जम्मू से आए कुछ लोग इनके यहां 90 से जब यह चले गए यहां से और सुनने में आया कि पंडित जी यहां से वापस नहीं गया
यही रहा है यहां के लोकलो के साथ रहा है यह बहुत ही शरीफ नफ थे ईमानदार थे इनको यहां के जो बुजुर्ग हजरात थे जो इनके हम उम्र थे उनसे भी हमने पता किया तो इसका इसके बारे में सब सही बोल रहे कि इन्होंने हमारे साथ शाना ब शना खाया पिया स्कूल
जाते थे वगैरह आपस में जमींदारी करते थे साथ में तो आज यह मिल सार तो मुझे लग रहा है कि फिर से वही पैदा होना चाहिए [संगीत] ब
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